कृषि भूमि की मिट्टी अब बहुत कठोर (सख्त) हो गई है, चिकनी हो गई है, मिट्टी से हवा निकल गई है, मिट्टी की जल धारण क्षमता बहुत कम हो गई है, मिट्टी का कार्बन लेवल बहुत घट गया है, ऊपरी 6 इंच की सतह में अति आवश्यक सुक्ष्म खनिज तत्व लगभग समाप्त हो गए हैं। जिसके कारण पौधों में संतुलित विकास नहीं हो रहा है और इन खनिज तत्वों की कमी से फसलों में बीमारी भी बढ़ रही है। मिट्टी का पीएच भी असंतुलित हो गया है, धनायन-विनिमय क्षमता भी अवरूद्ध हो गया है। मिट्टी में फसल को बढ़ाने वाले जीवाणुओं के स्थान पर कीटाणु बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। फंगस, वायरस, व्हाइट ग्रब्स, तेला, चेपा, माहू, निमेटोड जैसे हानिकारक कीट बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं।
मिट्टी की बीमारी और उपाय:
रासायनिक खादों ने मिट्टी को कमजोर और निर्जीव बना दिया है। वो अपने आप पोषक तत्व नहीं बना पाती। ये कमजोरी दूर करने के लिए हमें जैविक खादों का सहारा लेना होगा। कम्पोस्ट, गोबर खाद, हरी खाद, ये ऐसे योद्धा हैं जो मिट्टी को फिर से ताकतवर बनाएंगे।
रासायनिक खेती मिट्टी के जीवाणुओं को भी मार देती है। ये जीवाणु ही प्राकृतिक रूप से मिट्टी को हवादार और पोषक तत्वों से भरपूर बनाते हैं। इनका अकाल खत्म करने के लिए हमें मित्र कीटों को आकर्षित करना होगा। नीम की खाद, फूलों के पौधे, ये मित्र कीटों के लिए आश्रय स्थल बनेंगे।
सिंचाई का पानी सोना है मिट्टी के लिए, पर हमने इसका दुरुपयोग किया है। परिणाम स्वरूप, जलभराव और मिट्टी का क्षरण हुआ है। हमें जल संचयन की तरकीबें अपनानी होंगी, जैसे कुंड, तालाब, गड्ढों में बारिश का पानी संचय करना।
फसल: जब मिट्टी स्वस्थ होती है, तो उसमें उगने वाला अन्न भी स्वस्थ और पौष्टिक होता है। रासायनिक अवशेषों से मुक्त, ये फसल हमारे जीवन का आधार बनेगा।
जीवन का संतुलन: मिट्टी का स्वास्थ्य सिर्फ फसल ही नहीं, बल्कि पूरे पर्यावरण को प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मिट्टी एक हथियार है। उसे स्वस्थ रखकर हम एक संतुलित और टिकाऊ भविष्य की ओर कदम बढ़ाएंगे।
इस सब का स्थाई समाधान TCBT कृषि विज्ञान पिछले 15 वर्षों के अध्ययन और शोध से प्राप्त परिणामों के आधार पर आप सब किसानों को दिए जा रहा है। भारत भर के सैकड़ों किसानों ने TCBT कृषि भूमि उपचार को अपनाकर अपनी मिट़्टी को शुद्ध, स्वस्थ्य, सजीव और समृद्ध कर लिया है। अब भी यह प्रक्रिया अपनाएँ और उक्त सभी समस्याओं से स्थाई निदान पाएं, 2 वर्ष में कृषि भूमि में 2% तक कार्बन बढ़ाकर अपनी मिट्टी को मक्खन जैसी मुलायम बनाएँ।
बिना फसल लिए 6 माह में भूमि उपचार प्रक्रिया और बजट (प्रति एकड़)
प्रक्रिया
सबसे पहले ऊर्जा जल बनाकर एक एकड़ भूमि में सिंचाई जल के साथ डाल दें। बहुत ज्यादा फंगस हो तो एक लीटर नैनो सिल्वर एजी+ भी ऊर्जा जल में मिलाकर चलाना है। इसके पश्चात जमीन की गहरी जुताई करनी है, यदि 6 इंच नीचे की मिट्टी बहुत ज्यादा सख्त हो चुकि है तो सब-सॉइलर भी चलवाएं। सब-सॉइलर एक उपकरण है जो गहरी जुताई कर सकता है और ढाई फीट गहराई तक मिट्टी को तोड़ सकता है। इसके पश्चात भूमि पर सीवीआर मिट्टी या तालाब की 8 से 10 ट्राली मिट्टी प्रति एकड़ भुरकाव करें। तत्पश्चात खेत को समतल करके उसमें ढाई-ढाई क्विंटल लाल और सफेद मिट्टी एवं रॉक स्वाइल का भुरकाव कर दें। 50-50 किलो सफेद खनीज और गोवर्धन खाद, 2 किलो कार्बन रिचार्जर और 250 ग्राम नैना महीराजा मिलाकर प्रति एकड़ भुरकाव कर दें।
अब इस खेत में 2 किलो तिल बोकर सिंचाई प्रारंभ कर दें। सिचांई जल में पहले 400 लीटर ऊर्जा जल जमीन पर जाने दें, फिर क्रमश: जीवाणु जल-200 लीटर, अन्न दृव्य रसायन -200 लीटर, जैव रसायन-20 लीटर, फफूँद भक्षक घोल -200 लीटर, कीट भक्षक घोल-200 लीटर,षडरस 10 लीटर सिंचाई जल में मिलाकर एक एकड़ में समान मात्रा में भूमि में जाने देना है। 25 किलो गोवर्धन खनिज खाद को 15-15 दिन के अंतर में दो बैग (50 किलो) को जमीन में भुरकाव करना है। दूसरी सिंचाई में भी ऊर्जा जल छोड़कर बाकी सब समान मात्रा में जाने दें। 35 दिन में सनई की हरी खाद 3 फुट की ऊंचाई में बढ़ जाती है, तब इसे रोटावेटर से कट करके जुताई करके जमीन में मिला देेना है।
7 से 8 दिन बाद पुन: 3 किलो सनई की हरी खाद के लिए बोना है। और फिर क्रमश: जीवाणु जल-200 लीटर, अन्न दृव्य रसायन -200 लीटर, जैव रसायन-20 लीटर, फफूँद भक्षक घोल -200 लीटर, कीट भक्षक घोल-200 लीटर,षडरस 10 लीटर सिंचाई जल में मिलाकर एक एकड़ में समान मात्रा में भूमि में जाने देना है। 35 दिन में सन की हरी खाद 3 फुट की ऊंचाई में बढ़ जाती है, तब इसे रोटावेटर से कट करके जुताई करके जमीन में मिला देेना है। 2 बैग गोवर्धन खनिज भी 15-15 दिन के अंतर से दो बार भुरकाव करना है।2 बार जमीन में सनई की हरी खाद गढ़ाने के बाद 3.5 फिट की चौड़ाई में स्थाई बेड का निर्माण करना है। नाली 1.5 फुट चौड़ी रखनी है। नाली की मिट्टी बैड पर डालकर बेड की ऊंचाई बढ़ा देनी है। बेड के ऊपर ड्रिप लगाकर या नाली में सतत पानी देकर बेड में नमी बनाएं रखना है। बेड को बिना ज्यादा छेड़छाड़ किए फसले लगानी है। बिन जुताई किए फसलें लगानी है। फसलाें के फसल अवशेष का अच्छादन बेड पर करते रहना है। जीवाणु जल, अन्न दृव्य रसायन, जैव रसायन, अणु जल, सजीव जल बेड पर सिंचाई के पानी के साथ मिलाकर अगले दो वर्ष तक हर सिंचाई में देते रहना है। फसलों के ऊपर अणु जल और छाछ द्रव्य रसायन का आवश्यकता अनुसार स्प्रे करना है। दो वर्ष में मिट्टी में 2 प्रतिशत से अिधक कार्बन हो जाएगा। मिट्टी मक्खन जैसी मुलायम हो जाएगी। भूमि उपचार की इस प्रक्रिया के बाद बेड पर सभी फसलें बिना जुताई किए सीधी बिजाई करनी है और पेड़-पौधे धोड़ी सी मिट्टी हटाकर लगा देना है।
फसल लेते हुए एक वर्ष में भूमि उपचार की प्रक्रिया
एक वर्ष की अवधि में उक्त 6 माह की संदर्भित समाग्रियों के अतिरिक्त गौवर्धन खनिज खाद 4 बैग, कार्बन रिचार्जर आधा किलो, आयोनिक ग्रिन (ज्वालामुखी मिट्टी) की अतिरिक्त जरूरत पड़ेगी। इसका उपयोग फसल बढ़ाने के लिए किया जाएगा और इससे मृदा उपचार की प्रक्रिया भी पूरी होगी। हरी खाद को खरीफ मौसम में फसल बोने के पूर्व लेना चाहिए । सीवीआर मिट्टी या तालाब मिट्टी बुवाई के पूर्व भुरकाव कर दें। भूमिधन को बोवाई पूर्व भुरकाव कर देना है। फसल के लिए जब सिंचाई की जा रही हो तब सभी तरह के जीवाणु और जैव रसायन, षडरस को सिंचाई जल के साथ मिलाकर दे देना चाहिए। महीराजा को बीजोउपचार में मिलाकर उपयोग कर लेना है। गोवर्धन खनिज खाद हर सिंचाई के पूर्व जमीन पर बिखेरना है।
फसल लेते हुए दो वर्ष की अवधि में भूमि उपचार
उक्त एक वर्ष की प्रक्रिया में लगाने वाले उत्पादों के अतिरिक्त मात्रा में गोवर्धन खाद कुल 16 बैग, आयोनिक ग्रिन दो बैग (50 किलो), महीराजा कुल एक किलो, जैव रसायन कुल 600 लीटर, जीवाणु तल- 5000 लीटर, कार्बन रिचार्जर- एक किलो एकत्रित मात्रा में देना पड़ेगा। यद्यपि इन सब का उपयोग फसल उत्पादन के लिए हो रहा है, फिर भी इन उत्पादों से भूमि की उपचार की प्रक्रिया ही पूर्ण होगी। उपयोग की प्रक्रिया उक्त ही रहेगी।
भूमि उपचार की समान्य प्रक्रिया
जिन किसान भाईयों को लगता है कि भूमि उपचार का बजट ज्यादा है और कम खर्च में भूमि उपचार करना चाहते हैं तो वे सामान्य प्रक्रिया का पालन करते हुए भूमि उपचार कर सकते हैं। इस सामान्य प्रक्रिया में 5 से 6 वर्ष की अवधि में खेत की मिट्टी स्वस्थ्य और सजीव हो जाती है।
फसल लेते हुए 5 से 6 वर्ष की अवधि में भूमि उपचार की प्रक्रिया
(हर फसल में ये प्रक्रिया अपनानी होगी)
इस प्रक्रिया में किसान भाई अन्न द्रव्य रसायन और षडरस से बीजोउपचार करें, सीवीआर मिट्टी या तालाब मिट्टी एक ही बार जमीन में डालना है। जैव रसायन, षडरस और भस्म रसायन तीनों को मिलाकर अणु जल बना लेना है, इस अणु जल का 100% की मात्रा से जमीन पर देना है और 50% की मात्रा से फसलों पर स्प्रे भी करना है। फफूँद भक्षक घोल को जमीन पर चलाना है और कीट भक्षक घोल का स्प्रे करना है। फसल अवशेष को कम्पोस्ट खाद बनाकर वापस जमीन में डालना है। गोवर्धन खनिज खाद को हर सिंचाई पूर्व जमीन पर बिखेरना है।
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2 comments
Behatarin jankari jo kewal theory par hi nahi balki practical ke sath bataya gaya hai .
बहुत ही उपयोगी जानकारी है। आभार व्यक्त करता हूं।